क्या हम इस लायक हैं के हमारे देश का नाम भारत जैसा महान हो? Navseekh Education May 31, 2020

क्या हम इस लायक हैं के हमारे देश का नाम भारत जैसा महान हो?

आज सुबह एक खबर पढ़ी शीर्षक था, “देश का नाम भारत हो या India? सुप्रीम कोर्ट करेगा सुनवाई”।
खबर अच्छी लगी, शायद एक गर्व का क्षण होगा हर देशवासी के लिए। एक दूसरा विचार भी था मन में, भारत अर्थात ज्ञान में रमा हुआ, जो ज्ञान से परिपूर्ण हो। एक महान नाम। क्या किया है हम देशवासियों ने? क्या हम इस नाम के काबिल भी हैं?
वर्षों की गुलामी के बाद जब हम मानसिक तौर पर अब भी कई चीजों के गुलाम हैं ये नाम धारण करने का हमें क्या हक है?

कई ऐसी चीज़ें हैं जिन पर हम बात करते ही नहीं, आज के देश के माहौल के हिसाब से हम हर दूसरी विचारधारा का विरोध कर के उसे कुचलना चाहते हैं के वो हम सी नहीं है। अशिक्षा, गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, बाल विवाह, ढहती अर्थ व्यवस्था, किसानों की आत्महत्या, जातिवाद, सांप्रदायिकता, भ्रष्टाचार, यौन-शोषण एवं बलात्कार, भेदभाव, नैतिकता की कमी, नेता भक्ति, खरीदी जा सकने वाली न्याय व्यवस्था, जिम्मेदार लोगों की अपनी जिम्मेदारियों को निभाने की अनिच्छा, मूक दर्शक बनी जनता, महिला शिक्षा और असमानता ऐसे कई मुद्दे और हैं जो सिर्फ चुनाव में दिखाई देते हैं। क्या इन सब बुराइयों के साथ हमें हक है हमारे उस गौरवशाली नाम को धारण करने का? क्या इन सब बुनियादी कमियां जो कहीं न कहीं हमारे मन की उपज है, उस नाम की कीर्ति नष्ट नहीं हो जाएगी?

मानते हैं हमारा इतिहास बहुत ही गौरवपूर्ण रहा है। मगर कब तक हम सिर्फ अपने इतिहास के दम पर हम खुद को महान बताते रहेंगे। बहुत सी विशेषताएं भी हैं हमारी संस्कृति में पर क्या उनके आधार पर जो अनेकों-अनेक बुराइयां हैं यूं पर पर्दा डालना उचित है? हम लोग अधिकतर इतिहास में जीतें हैं, इतिहास की ही बातें करते हैं और उसका ही गर्व करते हैं वर्तमान की बहुत सी बातें नकार जाते हैं। जब देश भारत के नाम से जाना जाता था, स्त्री का स्वयंवर हुए करता था, आज ऐसा करने पर ऑनर किलिंग होती है। क्या इसे बन्द किए बिना हमें भारत कहलाने का हक़ है?
कभी शिक्षा भेदभाव से परे जीना सिखाती थी, आज सिर्फ पढ़ना लिखना सिखाती है। क्या शिक्षा का ये स्वरूप जहां ये एक व्यापार है, अमीर को अच्छी शिक्षा और गरीब को कमतर शिक्षा हमें भारत बनने देगा?

जहां हमें धर्म सिर्फ माता पिता, गुरु और ईश्वर को पूजना सिखाता था, वहां स्वार्थ के लिए नेता भक्ति हमें भारत कैसे बनने देगी?

करुणा और संवेदना सिखाने वाले बुद्ध के देश में, जब बच्चे भूख से बिलखते हैं, गरीब, किसान शोषित हैं और आत्महत्या को मजबूर हैं, महिलाओं के साथ रोज़ अनेकों अत्याचार होते हैं तब हमारी संवेदना कहां मर जाती है?

जाती और संप्रदाय के नाम पर जब देश के अनेकों लोग एक-दूसरे का गला काटने को सिर्फ इसलिए तैयार हो जाते हैं के किसी सत्तालोलुप नेता ने उन्हें भड़काया है या फिर किसी स्वघोषित धर्मगुरु ने ताकि उसकी दुकान चलती रहे। क्या इस सब से हम भारत कहलाने के अधिकारी हो जाते है?

हमारा समाचार तंत्र सिर्फ किसी एक पक्ष को दिखाते हैं, ऐसे में क्या आंखें मूंद किसी भी कही बात पर विश्वास करना हमें स्वतंत्र और उचित विचारधारा वाला बनता है? जहां राजनेता सिर्फ आरोप प्रत्यारोप से अपनी सरकार बचाता है और ढोंग करता है, वहां एक व्यक्ति जिसकी देश के प्रति इन लोगों से ज़िम्मेदारियां कहीं कम है अपने खुद के स्रोतों से लाखों लोगों की मदद कर जाता है। ऐसे में आप भारत जैसे महान नाम का वरण कैसे कर सकते हैं?

मेरे विचारों में देश महान तब तक नहीं बन सकता, जब तक उसकी प्रजा महान न हो। अगर हम खुद से सवाल करें के हमने ऐसा क्या किया है, किस हक से हम खुद को एक महान देश कह सकते हैं? क्या किया है हमने के हम अपने देश को ज्ञान से परिपूर्ण वो नाम दें “भारत”? क्या हम इस नाम की कीर्ति बनाए रखने के लिए कोई योगदान कर पाएंगे?

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