पहले सैकड़ों नज़रों को खुद को घुरते देख मुझे अजीब लगता था मगर अब आदत सी पड़ चुकी है, अपने माँ और बाबूजी की आँखों में मैं कब से वो निश्छल प्रेम देखने को तरस सी गई हुँ, उनकी आँखों में अब प्यार से कहीं ज़्यादा अपने लिए दया और सहानुभूति दिखती है। उन्हें मुझे हमेशा औरों से छिपाना होता है। अक्सर रिश्तेदारों से मुझे मिलाते वक्त उनकी आँखों में शर्म होती है, शहर में । हमारा शहर ज़्यादा बड़ा नहीं है, अधिकतर लोग एक-दूसरे को जानते थे। शहर की लगभग सारी नज़रें मुझे ख़ुद पर रेंगती मालूम पड़ती थी जैसे वे मुझे कोई घृणित वस्तु समझते हों। शहर के कई लड़के मुझे ऐसी नज़रों से घुरते मानो उन सब का मेरे शरीर पर कोई अघोषित हक हो। मुझे घर से बाहर निकलने में डर तो नहीं है, मगर इस पाखण्ड और दोगलेपन से भरे समाज का हिस्सा होना अब मैं कतई नहीं चाहती। हमेशा से ऐसा नहीं था, सात बरस पहले मेरी ज़िन्दगी बिल्कुल आम थी फिर एक दिन कुछ ऐसा हुआ जिसे मैं चाह कर भी कभी बदल नहीं सकती। क्या दोष था मेरा, उम्र के चौदहवें वर्ष में स्कर्ट पहनना, मासूम होना, किसी को परिवार का हिस्सा मानना या किसी से इज़्जत और प्यार से बात करना?
वो दिन भी एक आम सा दिन ही था, स्कूल के बाद मैं अपने छत पर टहल रही थी। नवंबर का महीना था दीवाली को कुछ ही दिन बाकी होंगे शायद। मेरे पड़ोस में एक मोनू भैया रहते थे जो उम्र में मुझसे करीब आठ साल बड़े थे, उनके और हमारे घरों में बिल्कुल परिवार जैसे रिश्ते थे। हमारे घरों की छतें एक-दूसरे से सटी हुई थी, उस दिन वो भी उनके घर के छत पर टहल रहे थे। मैंने उन्हें आवाज़ दी तो वो कूद के मेरे घर की छत पर आ गए, हम इधर-उधर की बातें कर रहे थे के अचानक उनके अंदर का राक्षस सा जागा जैसे उनका वो प्यार जताना मेरा खयाल करना सब दिखावा था उनकी नियत तो कुछ और ही थी। उन्होंने मेरे सिर को पकड़ कर ज़ोर से छत की दीवार पर मारा मैं आधी बेहोश सी हो गई फिर मेरे शरीर को नोचना शुरू किया, जब होश आया तो मैं खून से लथपथ थी, बाबूजी मुझे अपनी गोद में लेकर हॉस्पिटल में दौड़ रहे थे। मेरे सारे शरीर पर चोट के निशान थे, सारा बदन जल सा था और मेरी किसी से बात करने की हिम्मत न थी। मैं बस बोले जा रही थी मोनू भैया ने ऐसा क्यों किया? जब महीनों बाद मैं ठीक हो कर घर आई तो सब बदल चुका था, मैं जानती थी के मेरे साथ क्या हुआ था। उस दुर्घटना ने न केवल मेरे शरीर को नुकसान पहुंचाया था बल्कि मेरी आत्मा पर ऐसे घाव छोड़े थे जिनका कोई दूसरा इलाज नहीं है। मेरे ठीक होने के बाद जब घर से कानूनी कार्यवाही होना शुरू हुई तो उनके घरों से और मेरे अपने रिश्तेदार भी बाबूजी को नसीहत देने आते के पीछे हट जाएं हमारे बेटे का भविष्य बिगड़ जाएगा, उसने छोटी सी ही गलती की है, आपकी लड़की का ही चरित्र ठीक नहीं है, आपकी ही बदनामी होगी। बाबूजी के बस में होता तो उस लड़के का खून किए बिना न रुकते मगर वो मजबूर थे। उस लड़के का सामना मुझसे बाद में भी हुआ, उसकी नज़रें अब ज़्यादा घिनौने तरीके से मुझे देखती थी उसे अपने किए पर कोई पछतावा न था। और ये बेगैरत समाज जो देवी को पूजता तो है मगर किसी बेटी को उचित सम्मान देने की इसे कोई इच्छा नहीं, एक चौदह साल की बच्ची जिसे कोई समझ नहीं उसके चरित्र पर उंगली उठाने में तनिक भी न हिचकिचाया। उस वक्त मुझसे पूछा गया हर सवाल मेरी आत्मा पर वैसा आघात है जैसा उस दुर्घटना ने भी न किया था। वो आदमी को इस सब का दोषी है, वो अपनी सज़ा काट चुका है मेरे पड़ोस में अब भी रहता है। उस अपने उस काम का कोई पछतावा नहीं, उसकी बीवी है दो छोटे बच्चे हैं और एक खुशहाल जिंदगी। उससे उलट में समाज से कट सी गई हूं, घर से निकलने में मुझे सोचना पड़ता है, मेरे पास तो किसी का प्यार नहीं बचा, मैं तो बिना कुछ किए ही अपना सम्मान भी खो चुकी हूं। जाने के लिए भी मेरे पास कोई अपना नहीं है, कोई ऐसी जगह नहीं जहां इस सब से शांति मिले। एक सवाल है जो पूछना है मुझे खुद को अच्छा और सभ्य बताने वाले इस समाज से क्या दोष था मेरा? आखिर ऐसा कौन सा पाप हुआ था मुझसे, ये कैसा न्याय है जहां गलत करने वाला तो सात साल में छूट गया था मगर मैं जिसके साथ गलत हुआ वो सारी उम्र के लिए एक तरह की सज़ा की हकदार हो गई?
What happens after child abuse? Can you imagine the effect it causes on an innocent mind?
Navseekh Education
May 30, 2020
- May 30, 2020
- Need of an hour
- By Navseekh Education
2 Comments
निःशब्द , सुनकर मन उस वेदना के प्रति रो रहा है । रुक सा गया है ।
परंतु उम्मीद है कलम जब तक इसको लिखती रहेगी बदलवा आएगा
[…] Leave a comment on Blogs डिजिटल इंडिया मेड इन चाइना Impact of education on society and social behavior What happens after child abuse? Can you imagine the effect it causes on an innocent mind? […]