वो परियां, वो झरने और नदियां, वो जानवर, राजकुमार और राजकुमारियां, राजा और रानियां, अपने बचपन की सारी कहानियां जो दादी-नानी, मां-पिताजी या घर के किसी बड़े ने हमें सुनाई हैं, हमें गढ़ती है। मेरे बचपन की शिक्षा गांव में ही हुई, एक सरकारी स्कूल में और उसके पहले कि शुरुआत एक आंगनवाड़ी में। आंगनवाड़ी मतलब शहरों में छोटे बच्चों का प्ले स्कूल का ग्रामीण रूप जो सरकार के द्वारा चलाया जाता है। अगर शिक्षा के आरंभ की बात करूं तो वो शुरू हुआ था कहानियों से। हम में से कइयों का बचपन ऐसा ही रहा होगा जैसा मेरा था, बिजली की कोई ठीक व्यवस्था नहीं, ले दे कर पूरे मोहल्ले में सिर्फ एक या दो टीवी, मोबाइल और सोशल मीडिया का कोई नाम नहीं। बातें सिर्फ मिलकर होती थीं और खेल सारे आउटडोर और बोर्ड गेम्स के नाम पर सिर्फ़ ज़मीन पर चॉक से बनी कुछ लाइनें जिसे निमाड़ की आम भाषा में “सार” कहते हैं और हिंदी में चौकबरा और “डाईस” की जगह दो हिस्सों में टूटे इमली के दो बीज। इस सब के बाद जो वक़्त बचाता था शाम का वो अक्सर गांव की चौपाल पर बिताता था। मगर सोने के वक़्त तक अक्सर दादा-दादी, मां-पिताजी या परिवार के किसी बड़े की चौपाई के आसपास बच्चों की भीड़ लगना लगभग तय होता था। हर रोज़ की ज़िद के बाद जो कहानी सुनने को मिलती थी वैसे मिठास आज के मोबाइल और टीवी की कहानियों में कहां। जैसा सुख बाल मन को वो कहानियां दे सकती हैं वैसा और कुछ दे ही नहीं सकता। आज भी जब अपनी पुरानी यादों में झांककर देखता हूं, उनकी कहानियों ने है तो एक ऐसी पृष्ठ भूमि बनाई है, संस्कारों की ऐसी बुनियाद तैयार की है जो और को स्कूल या कॉलेज नहीं कर सकता।
कहानियां रोचक होती हैं, बच्चे उनसे बहुत जल्दी जुड़ जाते हैं। कथाएं बालमन प्र एक अमिट छाप छोड़ती हैं, जो आजीवन हमारे साथ रहता है। कहानियों के द्वारा शिक्षा देना आजकल की बात नहीं, इसके साक्ष्य हमें भारतीय इतिहास में अनेकों मिलते हैं। कथाओं के माध्यम से किसी भी बड़ी बात को कह देना और सरलता से कोई चीज समझ देना भारत की शिक्षा के मूल में है। उदाहरण के तौर पर आप पंचतंत्र को के लिजिए, इसके अलावा रामायण, महाभारत, वेद, वेदांग, उपनिषद्, पुराण वैसे तो कहानियां हैं मगर वो धर्म और जीवन की अनेकों शिक्षा इतनी आसानी से दे देती हैं, नैतिक मूल्यों को इतनी आसानी से सुदृढ़ कर सकती हैं को किसी और माध्यम से संभव नहीं होगा। इन ग्रंथों को सिर्फ संप्रदाय और ईश्वर से जोड़ कर उनका मर्म न समझना एक भूल ही हो सकती है। सारी कथाएं जीवन शैली को सही से, व्यावहारिकता और नैतिक मूल्यों के आधार पर जीना सिखाती हैं।
बचपन में कई कहानियां सुनी होंगी आपने भी जिनमें बताया गया होगा झूठ बोलना गलत है, चोरी करना गलत है, हमें सबसे अच्छा व्यवहार करना चाहिए। ये सारी बातें आपने किसी न किसी कहानी से ही समझी होगी न। बच्चों के मन पर कहानियों के प्रभाव को और उनको और समझना हो तो आपको गीजुभाई बधेका द्वारा रचित “दिवास्वप्न” एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। “माइंड प्रोग्रामिंग”, जिसमें किसी व्यक्ति के दिमाग को किसी एक चीज़ के अनुकूल ढालना। ये काम कथाएं बड़े सही ढंग से करती हैं मिसाल के तौर पर आपको बचपन में कथाओं के माध्यम से अगर सिखाया गया है के कोई काम गलत है तो आपके लिए वो काम आज भी गलत है।
कथाएं घर के बड़ों और बच्चों के बीच का संवाद ही तो है। एक ऐसी बातचीत जो रस से परिपूर्ण है, बच्चों को शिक्षा तो देती ही है वरन् उन दोनों के बीच का संबंध इतना प्रगाढ़ कर देती है जो किसी और माध्यम से हो ही नहीं सकता। अभी लोग ढेरों स्टेटस डालते है सोशल मीडिया पर घर के बड़ों के सम्मान में मगर इसके विपरीत अधिकतर मोबाइल में तल्लीन होते हैं। उपर से ये को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स हैं, वो नए तरीके खोजते हैं ताकि लोगों को और लत लगा सके। इन सब विसंगतियों के बीच एक घर के बड़ों की कहानियों का पिटारा ही ऐसा है जो हर तरह से द्वेष मुक्त है।