अर्थव्यवस्था बनाम ज़िन्दगी Navseekh Education June 1, 2020

अर्थव्यवस्था बनाम ज़िन्दगी

देश में Covid-19 के मामले बढ़ते जा रहे हैं, और देश अब खुलने को है। मजदूरों का पलायन अब भी थामा नहीं है मौत अब और विकट रूप में फैली है। अर्थव्यवस्था को उठाना बेहद ज़रूरी है मगर क्या किसी दुर्घटना की स्थिति में कोई भी सरकार किसी भी प्रदेश की, किसी भी पार्टी की, कोई भी नेता कोई ज़िम्मेदारी लेगा? क्या ज़िन्दगी और अर्थव्यवस्था दोनों को समान दर्जे का सम्मान मिलेगा? क्या इस बात की व्यवस्था होगी के देश की अर्थ व्यवस्था को पटरी पर लाने वाला कोई भी प्रयास किसी की ज़िन्दगी से खिलवाड़ नहीं करेगा?

पसरा सन्नाटा हर घर में,
फैली हैं मौत शहर में,
घर को लौटते गरीबी के मारे,
बदहाल भूख से बेचारे,
बेघर हैं सब खोते वो सारे,
करुणा संवेदना विवश है,
कैसा निर्मम ये दृश्य है,
मृत मां को जगाने,
एक बच्चा सरेआम रोया है,
नेता दुबका, देश सोया है,
भटकाता है, झूठा हर पक्ष है,
स्वार्थ से बड़ा क्या कोई उनका लक्ष्य है,
पहले जान महंगी थी,
अब अर्थव्यवस्था ज़रूरी है,
देश चलाना भी तो गरीब की ही मजबूरी है,
वक्त के साथ अब अमीरों ने पैसा गंवाया है,
तो विकट मौत के बीच फ़िर देश खुलवाया है,
माना अर्थव्यवस्था पटरी पर लाना है,
जिम्मेदारों को देश चलाना है,
अब खुद को आत्मनिर्भर भी तो बनाना है,
मौतें गर हुई तो ज़िम्मेदार कौन होगा?
उजड़े घरों का जवाबदार कौन होगा?
जो किसी की मौत पर पैसे बांटे जाएंगे,
वे किसी इंसान को वापिस ला पाएंगे?
क्या वे अनाथों को मां बाप वापिस दिलाएंगे?
क्या वे फ़िर लूटे नहीं जाएंगे?

-Neil

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